सिर्फ नारायण कवच का पाठ मात्र से आपकी पूजा अपने आप में पूर्ण है।
नारायणकवच (अचूक )
" नारायणकवच" ब्रह्मास्त्र है.ऐसा सिद्ध पुरुषों का कहना है .सिर्फ नारायण कवच का पाठ मात्र से आपकी पूजा अपने आप में पूर्ण है।."नारायण कवच" आसान है क्या? कठिन तो है.फिर कैसे किया जाए...
नारायण कवच
इस कलयुग में, चारो तरफ, एक दूसरे को, नीचा दिखाने के लिए लोग अपने स्तर से कोई भी कोशिश नही छोड़ते।और समय भी अपने स्तर से कठिन परीक्षा लेने से नही चूकती है।ग्रह भी अपना प्रभाव दिखाने से नही चूकते।अर्थात परेशानी कोई भी हो,
नारायण कवच सर्व उपयोगी है।
कवच पाठ का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।
मान लीजिये की इस जीवन मे दुख लिखा जो भोगना तो पड़ेगा ही और सुख दूर तक नजर नही आ रहा है। लेकिन नारायण कवचका पाठ करके प्रभु का भजन करके, प्रभु के बैकुंठधाम में वास मिलेगा।या उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।
इसके पाठ से राज्यलक्ष्मी की प्राप्ति।
यह कवच श्री मद्भागवत छठा स्कंध के अध्याय आठ में है।विधि तो बहुत है जो आम मनुष्य के लिए संभव नही, नारायण कवच धारण करना भी अपने आप मे कठिन है। एक बार ही शुद्ध अंतरात्मा से पाठ कीजिए शुद्ध अक्षर का उच्चारण कीजिये इतनी अच्छी से पाठ कीजिये कि आपको महसूस हो कि मैं प्रभु की शरण मे प्रवेश कर गया हूं।
(जिन के लिए न्यास विधि संभव न हो तो सिर्फ पाठ ही कीजिए)
नारायण कवच पाठ
भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं, जो शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश (फंदा) इन आठ आयुधों धारण किए हुए हैं,जो अणिमा, महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व इन आठ गुणों से युक्त है, और जिनकी आठ भुजाएं है, वे भगवान श्रीहरि मेरी सब प्रकार से रक्षा करें।।
मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुरूपी वरूणपाश से मुझे बचावे। माया का आश्रय लेकर ब्रह्मचारी का रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूपधारी श्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें ।।
3:- दुर्ग, वन, तथा युद्धस्थलादि में नृसिंह भगवान मेरी रक्षा करे, जो हिरण्यकशिपु आदि दैत्यपत्नियो के शत्रु है और भयानक अट्टहास से समस्त दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे,प्रभु नृसिंह सब प्रकार से हमारी रक्षा करे।।
अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में मेरी रक्षा करे, इसी तरह भगवान परशुराम जी पर्वतों के शिखरों पर और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें ।।
भगवान् नारायण मारण – मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें, ऋषिश्रेष्ठ नर भगवान गर्व से मेरी रक्षा करे, योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धनो से हमारी रक्षा करें ।।
सनत्कुमार भगवान कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवताओं के अवहेलना से, देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद भगवान देव पूजा के समय संभावित सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें ।।
भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से, बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेष भगवान क्रोधवशनामक सर्पों के गणों से मेरी रक्षा करें ।।
भगवान् श्रीकृष्णद्वेपायन व्यासजी अज्ञान से तथा बुद्ध भगवान पाखण्डियों के द्वारा फैलाये गए प्रमाद से मेरी रक्षा करें, धर्म-रक्षा करने वाले महान अवतार धारण करने वाले भगवान् कल्कि भगवान कलियुग के दोषों से मेरी रक्षा करें ।।
दिन के छः भागों में से प्रथम भाग प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा से, दिन के दूसरे भाग चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर,दिन के तीसरे भाग दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर, दिन के चौथे भाग मध्य काल को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ।।
दिन के पांचवे भाग अपराहन पहर काल में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें, दिन के छठ्ठे भाग सांयकाल में त्रिमूर्तिधारी माधव मेरी रक्षा करे ।।
इसी प्रकार रात के छः भागो में से प्रथम भाग प्रदोष काल मे भगवान हृषिकेश, रात के दूसरे भाग अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ।।
रात्रि के चौथे भाग पिछले प्रहर में श्रीवत्स चिन्ह विभूषित भगवान ईश, रात में पांचवे भाग उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, रात के छठ्ठे भाग सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं में कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ।।
हे सुदर्शन चक्र !, आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह है आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीक्ष्ण है। आप भगवान् की प्रेरणा से चारों ओर घूमते रहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये ।।
हे कौमुद की गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ इसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर – चूर कर दिजिये ।।
हे शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से तुरन्त भगा दीजिये ।।
हे भगवान् की खड़ग श्रेष्ठ नन्दक ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दिजिये। भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दिजिये या उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये ।।
सूर्य आदि नवग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ोंवाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों – वे सभी भगावान् के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायें ।।
बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें।।
श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से हमारी रक्षा करे ।।
संसार मे सत् (मूर्त पदार्थ ) असत् ( अमूर्त पदार्थ ) जो भी है वह वस्तुतः भगवान ही है। इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें ।।
जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों से रहित है-भेदों से रहित हैं। फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नाम की अपनी विभिन्न शक्तियों को धारण करते हैं। यह बात निश्चित रूप से सत्य है। अतः सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें ।।
जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी रक्षा करें ।।
देवराज इन्द्र ! मैने तुम्हें यह नारायण कवच सुना दिया है इस कवच से तुम अपने को सुरक्षित कर लो बस, फिर तुम अनायास ही सब दैत्य – यूथपतियों को जीत कर लोगे ।।
इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरूष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है ।।
जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता ।।
नारायण कवच की महिमा
इस कवच का एक यह भी प्रभाव है कि इसे धारण किये हुए मनुष्य की किसी भी क्षेत्र में, मृत्यु हो जाय तो उसकी सद्गति होती है। उसकी सद्गति के लिए क्षेत्र विशेष में मृत्यु का होना अपेक्षित नही होता।
श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परिक्षित् जो पुरूष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है ।।
परीक्षित् ! शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूपजी से यह वैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि में असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे ।।
।।इति श्रीनारायणकवचं सम्पूर्ण।।



