प्रेम मोहब्बत और कर्म से भरे इन रंगों को अपने जीवन में उतारते हुए होली का आनंद लीजिए
****** किसी को कष्ट मत दीजिए जो हो रहा है उसे होने दीजिए यही प्रभु की इच्छा है *****
रायपुर 13 /03/2025 /// होली वैसे तो रंगों का त्यौहार है, प्यार के रंग से भरे इन रंग-बिरंगे गुललो और पिचकारियों से निकलते हुए रंगो का नाम ही है होली वैसे तो होली बरसाना में रंग एकादशी से शुरू हो जाती है.होली का प्रमुख केंद्र उत्तर प्रदेश के बरसाना गांव से शुरू होता है पौराणिक कथा है कि श्री नारायण का जन्म इस पृथ्वी में सिर्फ प्रेम -मोहब्बत के लिए ही हुआ था .और उन्हीं की लीलाओं में से एक लीला बरसाना में राधा रानी के साथ खेली गई होली यह भी है राधा रानी के साथ खेली गई होली के प्रमाण बरसाना में आज भी मिलते हैं उस होली में नारी शक्ति को संपूर्ण शक्तिमान ही माना गया है पुरुष नारी के सामने निरीह और निढाल दिखाई पड़ता है पूरे उत्तर प्रदेश में वृंदावन में होली ब्रज में होली मथुरा में होली और इस होली ने पूरे भारत को अपने आगोश में ले लिया दुनिया में इस तरह के रंगों का मिलन कहीं और नहीं दिखाई देता है इसको देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक उत्तर प्रदेश में आते हैं और होली का यह आनंद उठते हैं बरसाना मथुरा वृंदावन और संपूर्ण उत्तर प्रदेश में जहां तक हो सके रासायनिक रंगों का उपयोग नहीं करते ज्यादा तार टिशु के फूलों से बना हुआ रंग ही उपयोग करते हैं जो पूरे शरीर में फेफड़ों में कहीं भी हानिकारक नहीं होता इस बात का ध्यान उसे वक्त से जाता है की रंग से किसी को नुकसान ना हो सभी प्यार से प्यार के सागर में गोते लगायें और भेदभाव ऊंच नीच को छोड़कर प्यार के इस सत्संग में कान्हा के साथ डूब जा में
भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार ने इस पृथ्वी पर उन तमाम अनाचारियों को और अत्याचारियों को सबक सिखाते हुए ही दंड दिया है पहले उन्हें प्यार मोहब्बत से समझाया है नहीं मानने के बाद उनका वध किया है द्वापर में श्री कृष्ण के जन्म से लेकर उनके देवस्थान तक जाने के जितने भी प्रमाण मिलते हैं वह प्रेम मोहब्बत से भरे प्रमाण मिलते हैं वह यही संदेश देते हैं कि हे मनुष्य तू सिर्फ अपना काम कर फल की चिंता मत कर फल मेरे हिस्से में छोड़ दे जो यह मंत्र को जान गए हैं वह प्रभु के अनुसार मोक्ष के रास्ते में आगे बढ़ रहे हैं प्रेम मोहब्बत के साथ भगवान श्री कृष्ण ने कर्म को भी सबसे बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा माना है क्योंकि बिना कर्म किए कोई भी जीव जीवन नहीं गुजार सकता यह संदेश उन्होंने बहुत ही सरल और खुद को समर्पित कर से का दिया है उन्होंने कहा है कि मैं भले ही तारणहार हूं लेकिन मैं भी बगैर कर्म के नहीं रह सकता सो हे मनुष्य द्वापर में भगवान के इन संदेशों को ध्यान में रखते हुए इस जीवन काल को संपूर्ण करते हुए मोक्ष की प्राप्ति कर यही इस कलयुग्यों को के लिए सबसे महत्वपूर्ण संदेश है प्यार मोहब्बत और कर्म
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।[5] गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।
होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है।



